राजस्थान सिविल सेवाएं (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 का भाग V अनुशासन से संबंधित है जिसके नियम 14 में शास्तियों की प्रकृति एवं प्रकार का उल्लेख किया गया है।
शास्तियों के आधारः राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 में वर्णित प्रक्रिया का अनुगमन करते हुऐ किसी राज्य कर्मचारी पर निम्न शर्तों के साथ शास्ति आरोपित की जा सकती है:
1. समुचित और पर्याप्त कारण हो (Good and sufficient reasons)
2. वे प्रावधानानुसार अभिलिखित किये जावे (Reasons shall be recorded)
शास्तियों के प्रकारः नियम 14 के अन्तर्गत किसी सरकारी कर्मचारी पर निम्नलिखित दो प्रकार की शास्तियाँ लगायी जा सकती है: (क) लघु शास्ति, एवं (Minor Penalties) (ख) वृहद् शास्ति (Major Penalties) (क) लघु शास्तियां निम्न तीन हैं :
नियम 14 (i): परिनिन्दा (Censure)
नियम 14(ii): वेतन वृद्धि या पदोन्नति रोकना (Withholding of increments or promotion)
नियम 14 (iii): लापरवाही से या किसी विधि, नियम या आदेश को भंग करने से सरकार को हुई आर्थिक हानि की उसके वेतन में से सम्पूर्ण या आंशिक रूप से वसूली (Recovery from Pay of the whole or part of any pecuniary loss)
परिनिन्दा
नियम 14(i) के तहत परिनिन्दा (Censure) एक औपचारिक शास्ति है जो नियमों में सबसे छोटी शास्ति है। यह नियमों में वर्णित प्रक्रिया का अनुगमन करके ही दी जा सकती है। यह शास्ति राज सेवक की पदोन्नति को प्रभावित करती हैं। राज सेवक जब भी पदोन्नति के लिये पात्र होगा तब परिनिन्दा की शास्ति के पश्चात् एक बार पदोन्नति से वंचित किया जायेगा। राज्य सरकार के परिपत्र क्रमांक प.2(1) कार्मिक/क-2/अप/आ दिनांक 4 जून 2008 के अनुसारयदि राजसेवक को एक बार से अधिक परिनिन्दा की शास्ति से आरोपित किया जावे तो प्रत्येक परिनिन्दा की शास्ति के लिये पृथक-पृथक बार राज सेवक की पदोन्नति रूकेगी। दूसरे शब्दों में, जितनी बार राज सेवक परिनिन्दा की शास्ति से दण्डित होगा उसे उतनी ही बार पदोन्नति से वंचित रखना होगा। इसी प्रकार राज्य सरकार के परिपत्र क्रमांक प.20 (1) वित्त/ग्रुप-2/92 Part VI दिनांक 24 जुलाई 1995 के अनुसार परिनिन्दा की शास्ति से दण्डित राज सेवक चयनित वेतनमान हेतु 1 वर्ष के बाद पात्र होगा। राज्य सरकार के परिपत्र क्रमांक प.15 (1) वित्त/नियम/2017 दिनांक 30 अक्टूबर 2017 एवं दिनांक 9 दिसम्बर 2017 के अनुसार राज्य सरकार के कर्मचारियों को आश्वासित कैरियर प्रगति स्कीम (ए.सी.पी.) मंजूर की गयी है। यदि किसी राज्य कर्मचारी पर परिनिन्दा की शास्ति अधिरोपित की जाती है तो परिनिन्दा के प्रत्येक आदेश की शास्ति के लिये आश्वासित कैरियर प्रगति स्कीम (ए.सी.पी.) 1 वर्ष के लिये आस्थगित की जायेगी। अनुशासनिक प्राधिकारीगणों द्वारा कभी कभी चेतावनी अथवा लिखित चेतावनी देने का आदेश पारित कर देते है जो कोई शास्ति नहीं हैं। ऐसे मामलों में कार्मिक विभाग के परिपत्र क्रमांक प.10(1) कार्मिक/क-2/75 दिनांक 26 नवम्बर 1993 में दिये गये दिशा निर्देशों के अनुसार 'परिनिन्दा' की शास्ति अधिरोपित की जानी चाहिये। कभी-कभी परिनिन्दा (Censure) और चेतावनी (Warning) को समकक्ष मान लिया जाता है, जबकि ऐसा नहीं है। नियम 14(i) के तहत परिनिन्दा (Censure) एक औपचारिक शास्ति हैजो नियमों में सबसे छोटी शास्ति है। यह नियमों में वर्णित प्रक्रिया का अनुगमन करके ही दी जा सकती है जबकि मौखिक या लिखित चेतावनी का नियमों में कोई अर्थ नहीं है। परिनिन्दा से पदोन्नति प्रभावित हो सकती है, चेतावनी से नहीं। राज्य सरकार के परिपत्र क्रमांक प.4 (1) कार्मिक/क-2/ अंप/2006 दिनांक 14 मई 2013 के अनुसार राज्य सरकार के किसी राज सेवक पर यदि परिनिन्दा की शास्ति अधिरोपित की जाती है तो उक्त दण्ड का प्रभाव राज सेवक की पदोन्नति पर यह होगा कि उक्त राज सेवक पदोन्नति के लिये दण्ड के पश्चात् 7 वर्षों में जब भी पात्र होगा तो उसे एक बार पदोन्नति से वंचित किया जायेगा। यदि राज सेवक को एक बार से अधिक परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित किया जाता है तो प्रत्येक परिनिन्दा के दण्ड के लिये पृथक-पृथक बार पदोन्नति रूकेगी। राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत सिविल अपील संख्या 8404/2011 (arising out of SLP (C) No. 30570 of 2010) राजस्थान राज्य बनाम शंकरलाल परमार व अन्य में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 30 सितम्बर 2011 को दिये गये निर्णय में यह निर्धारित किया गया है कि एक परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित राज सेवक को एक वर्ष विलम्ब से पदोन्नति मिलेगी अर्थात् जितनी बार राज सेवक परिनिन्दा के दण्ड से दण्डित है उसे उतनी ही बार पदोन्नति से वंचित रखना होगा। उक्त निर्णय के उपरान्त अब परिनिन्दा के दण्ड की उपेक्षा कर पदोन्नति हेतु विचार करने एवं अन्यथा योग्य पाये जाने पर पदोन्नति पर विचार करने के आदेश प्रसारित करना अनुचित होगा।
व्दराजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण एवं अपील) नियम 1958 के अंतर्गत परनिंदा दंड से दंडित प्रभाव के संबंध में 1. परनिंदा यह सबसे छोटी पेनल्टी है यह लघु शास्ति (17CC) अंतर्गत है। परिनिंदा के दंड से दंडित राजसेवक को वर्ष विलंब से पदोश्चति/एसीपी देने का प्रावधान है। 2. जितनी बार परिनिंदा से दंडित किया जावेगा उतनी बार पदोचति/एसीपी से संचित रखा जाएगा। 3. कार्मिक विभाग के परिपत्र 04.06.2008 के बिंदु संख्या 16.3 एवं परिपत्र दिनांक 26.07.2006 के अनुसार परिनिंदा से दंडित किए जाने पर एक बार पदोचति से वंचित करने का प्रावधान है। 2. प्रत्येक प्रकरण में अलग अलग प्रभाव अर्थात एक से अधिक प्रकरणों में दंड दिया जाता है तो कार्मिक को पदोक्षति से उतनी बार वंचित किया जाएगा।
नए नियम कार्मिक विभाग के आदेश दिनांक 22.10.2024 को आदेश जारी कर निम्नानुसार नियम किए गए 1. राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1958 के अंतर्गत अनुशासनिक कार्यवाही में राज्यकर्मियों को परिनिंदा का दंड दिए जाने पर इससे संबंधित राज्यकर्मियों की पदोचति प्रभावित नहीं होगी। 2. अर्थात् परिनिंदा के दंड के कारण किसी भी राज्यकर्मियों को पदोचति से वंचित नहीं किया जावेगा। 3. यह संशोधन 22.10.2024 से प्रभावी होगा। 4. इस आदेश से पूर्व DPC प्रकरणों को पुनः नहीं खोला जाएगा। 5. अगर 2024-25 की DPC अभी तक आयोजित नहीं हुई है तो उक्त डीपीसी को नए नियम के अनुसार की जा सकती है। अर्थात् नवीन प्रावधानंतर्गत किया जावे। परन्तु पूर्व वर्षों की विभागीय पदोन्नति समिति/रिव्यू विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक में इस परिपत्र (22.10.2024) के जारी होने के बाद आयोजित होती है तो उसमें पूर्व की व्यवस्था ही लागू होगी अर्थात परिनिंदा दंड प्रभावी रहेगा। 6. यह प्रावधान डीपीसी नियमों में किया गया है ACP/MACP में नहीं किया गया है।
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